सेतु समुद्रम परियोजना विरोधी अंदोलन के तहत एक जुट पर्यावरण वैज्ञानिकों और भू-वेत्ताओं ने कहा है कि मन्नार की खाड़ी और पाक जलसंधि टेक्टोनिक यानी आंतरिक हलचलों के लिहाज से काफी कमजोर है। भूकंप से जुड़े खतरों को लेकर भी काफी संवेदनशील है।
जियोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व निदेशक के. गोपालकृष्णन ने कहा है कि यह महज एक बालू का टीला नहीं । कृष्णन ने कहा कि ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जो साबित करते हैं कि रामसेतु भूगर्भीय, आंतरिक संरचना और सामुद्रिक विभाजक का काम करता है। विभिन्न भूगर्भीय और सामुद्रिक हलचलों को नियंत्रित करता है। उन्होंने कहा कि राम सेतु समुद्र को तोड़े जाने से समुद्र के भीतर भूस्खलन और भूकंप जैसी घटनाएं हो सकती हैं। दुर्लभ जीव-जंतुओं के आवास समाप्त हो जाएंगे।
गोपालकृष्णन ने कहा कि किसी भी परियोजना के लिए भू-तकनीकी मूल्यांकन आवश्यक है। लेकिन सेतु समुद्रम परियोजना के लिए समुद्र के भीतर कोई भूगर्भीय सर्वेक्षण नहीं कराया गया। उन्होंने केंद्र से अनुरोध किया कि इस परियोजना की नजाकत को देखते हुए बहु-आयामी समिति का गठन करे।
पर्यावरण विज्ञानी और मनोनमणियम सुंदरनर यूनीवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डा. अरुणाचलम का कहना है कि परियोजना के दौरान मानवीय गतिविधियां पाक जलसंधि और मन्नार खाड़ी की नाजुक पर्यावरण प्रणाली में उथल-पुथल मचा सकती हैं। सेतु को तोड़ा गया तो जैविक विविधता को भी व्यापक नुकसान होगा। साथ ही कोरोमंडल तट और हिंद महासागर में भी परिवर्तन होंगे। चक्रवात या सुनामी के कारण मानवजाति के लिए भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। डा. अरुणाचलम ने कहा कि अपना देश जल संसाधनों और आजीविका के लिए पूरी तरह मानसून पर आश्रित है। राम सेतु तोड़े जाने पर भारत से लगे समुद्रों में मानसून चक्र भी प्रभावित होगा। नतीजतन बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
From Jagran 28 September, 2007
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