Friday, October 24, 2008

चंद्रयान चांद पर उतरेगा



राकेट पीएसएलवी सी-11 रवाना। राकेट पर सवार चंद्रयान-1 चल पड़ा चांद की ओर। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लांच पैड से चंद्रयान-1 को लेकर पीएसएलवी सी-11 राकेट रवाना हुआ। भारत का पहला मानव रहित और चंद्रमा के अध्ययन के लिए बनाया गया चंद्रयान सफलतापूर्वक उच्च दीर्घवृत्त कक्षा में प्रवेश कर गया और अगर सब कुछ ठीक रहा तो यह यान आठ नवंबर को चंद्रमा की सतह पर उतरकर वहां भारतीय ध्वज फहरायेगा और वहां से जानकारियां भेजने का काम शुरू कर देगा। चंद्रयान पंद्रह दिन के सफर के बाद चंद्रमा की सतह से केवल सौ किलोमीटर दूर होगा।
इस गौरवमयी उपलब्धि के बाद अंतरिक्ष में ऐसी पहल करने वाला भारत विश्व का छठा देश बन गया है। इससे पहले यह गौरव रूस, अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और चीन को ही हासिल था।

44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी राकेट चंद्रयान-1 को आठ नवंबर में चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करेगा। पृथ्वी की कक्षा से 3,87,000 किमी दूर चांद की कक्षा में जाने के बाद चंद्रयान चंद्रमा की सतह से महज सौ किमी दूर रहेगा। चंद्रयान-1 दो साल वहां रह कर जरूरी जानकारी जुटाएगा। बेंगलूर में पीन्या स्थित इसरो के टेलीमीट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क [आईएसटीआरएसी] के वैज्ञानिक चंद्रयान की गतिविधियों पर नजर रखेंगे। वे इसे नियंत्रित करेंगे और वहां से आने वाली सूचनाओं को सहेजेंगे।

भारत का मिशन चंद्रयान-1 करीब चार अरब रुपये का है। यह दुनिया के बाकी देशों की तुलना में काफी कम खर्चीला मिशन है, जबकि काम के लिहाज से यह सबसे उन्नत है। यह पहली बार चंद्रमा का संपूर्ण नक्शा बनाएगा।

यह चंद्रमा की बनावट, वहां मौजूद खनिजों और पानी की मौजूदगी आदि के बारे में जानकारी जुटाएगा।

चंद्रयान-1 चंद्रमा पर हीलियम-3 की उपलब्धता और इसके ऊर्जा के विकल्प के रूप में इस्तेमाल करने की संभावनाएं भी टटोलेगा। अगर चंद्रमा पर उपलब्ध हीलियम-3 का इस्तेमाल ईधन के रूप में संभव हुआ तो आठसाल तक के लिए ऊर्जा संबंधी जरूरतें पूरी करने की चिंता खत्म हो जाएगी। हीलियम-3 की पृथ्वी पर उपलब्ध मात्रा महज 15 टन है, जबकि चांद पर इसकी 50 लाख टन की भारी-भरकम मात्रा मौजूद है। हजार

चंद्रयान-1 चंद्रमा पर पानी या बर्फ होने की संभावना भी तलाशेगा। इस संबंध में यह जितनी जानकारी जुटाएगा, उतनी अब तक के किसी भी अभियान से नहीं मिल पाई है।

चंद्रयान-1 अपने साथ 11 उपकरण लेकर गया है। इनमें से छह दूसरे देशों के हैं। इसके लिए भारत ने इन देशों से कोई पैसा भी नहीं लिया है। ये उपकरण चांद पर बस्ती बसाने के सपने को साकार करने के लिए अलग-अलग जानकारियां जुटाएंगे। इन उपकरणों के जरिए जुटाई गई जानकारी का इस्तेमाल भारत भी करेगा।

चंद्रयान-1 अपने साथ तिरंगा भी ले गया है। यह चंद्रमा पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर आएगा। चंद्रयान को चंद्रमा की कक्षा में उतारने के बाद वहां तिरंगा फहराया जाएगा।

तिरंगा चंद्रयान के मून इंपैक्ट प्रोब में है। इसे यान से अलग कर उल्टा किया जाएगा और यह चंद्रमा पर तिरंगा लहरा देगा।

श्रीहरिकोटा। चंद्रयान-1 के सफल प्रक्षेपण से उत्साहित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] अब वर्ष 2015 तक चंद्रमा पर मानव की चहलकदमी की तैयारी करेगा।

इसरो अध्यक्ष माधवन नायर ने 2015 तक चंद्रमा पर मानव को भेजने की बात कही है। उन्होंने बताया कि इसरो मंगल अभियान की भी तैयारी कर रहा है। नायर ने कहा, 'अब हम दो अंतरिक्षयात्रियों को ले जाने वाला कैप्सूल बनाने पर विचार कर रहे हैं। इसे जीएसएलवी [जियो सिंक्रोनाइज्ड सेटेलाइट लांच व्हीकल] राकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। इसमें करीब 12 खरब रुपये का खर्च आएगा। इस अभियान के लिए हमें बस सरकार की मंजूरी का इंतजार है।'

चंद्रयान के सफर की शुरुआत उस समय हुई जब इंडियन अकादमी आफ साइंस की बैठक के दौरान वर्ष 1999 में चांद पर भारतीय मिशन का प्रस्ताव किया गया। इसके बाद 15 अगस्त 2003 को लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चंद्रयान परियोजना की घोषणा की थी।

चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन विश्व का 68वां चंद्र अभियान है

पहला चंद्र अभियान सोवियत रूस ने दो जनवरी 1959 को भेजा था, इसके तीन महीने बाद ही अमेरिका ने तीन मार्च 1959 को अपने चंद्र अभियान को अमली जामा पहनाया। इन दोनों देशों ने अब तक 62 चंद्र अभियान भेजे हैं, जिसमें पहला मानव सहित चंद्र अभियान 20 जुलाई 1969 को भेजा गया था।


चांद पर भारत के इस पहले अभियान चंद्रयान-1 को 22nd October, 2008 बुधवार को पीएसएलवी-सी 11 से श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था। इस प्रक्षेपण यान के जरिए चंद्रयान-1 को 255 किलोमीटर के पेरिजी और 23 हजार किलोमीटर के अपोजी की अंडाकार कक्षा में प्रवेश कराया गया था। इस शुरूआती कक्षा में चंद्रयान को पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में साढ़े छह घंटे का समय लगता। यान के सफलतापूर्वक प्रक्षेपण के बाद एससीसी ने पहला सिग्नल प्राप्त किया और शुरुआती कार्य को अंजाम दिया।

उपग्रह को उच्चतम कक्षा में पहुंचाने के काम इसरो के टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क आईएसटीआरएसीस्पेसक्राफ्ट कंट्रोल सेंटर [एससीसी] द्वारा उपग्रह के 440 न्यूटन लिक्विड इंजन में करीब 18 मिनट स्थित तक फायर किया गया।

अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने बयान में कहा कि इंजन में इस फायर के साथ चंद्रयान-1 की कक्षा को बढ़ाकर अपोजीपेरिजी [धरती के सबसे दूरस्थ बिन्दु] 37 900 किलोमीटर किया गया जबकि उसका जबकि उसका पेरिजी [धरती के सबसे नजदीकी बिन्दु] 305 किलोमीटर किया गया। इस कक्षा में चंद्रयान-1 को पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए 11 घंटे का वक्त लगेगा।

इसरो ने कहा कि चंद्रयान की सभी प्रणालियां सामान्य रूप से काम कर रही हैं। आने वाले दिनों में चंद्रयान को उच्चतर कक्षा में पहुंचाने के काम को अंजाम दिया जाएगा।



1 comment:

omsingh shekhawat said...

thank you very much sir ..
nice collection of information in hindi language .