इसके विपरीत अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे ज्यादा मनमौजी नहीं होते और जिनकी आदतों वगैरह के बारे में निश्चित कुछ कहा जा सकता है उनमें भविष्य में व्यवहारगत दिक्कतें पाए जाने की समस्या बहुत कम होती है। शोधकर्ताओं ने ऐसे बच्चों को परिभाषित करते हुए बताया है कि ये वे बच्चे हैं जो खाना खाने से इनकार करते हैं या फिर खाने में अधिक समय लेते हैं, दिन में अलग-अलग समय पर ये भूख लगने तथा थकान की शिकायत करते हैं। जो चाहते हैं कि उन पर लगातार ध्यान दिया जाए अथवा जो शाम को या सारी रात सोते ही नहीं है।
डेली मेल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ता तेरह साल तक के 2000 बच्चों का अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक बच्चों के व्यवहार में आनुवांशिकी अहम भूमिका निभाती है लेकिन बच्चे के जन्म से लेकर एक साल की आयु का तक पालन पोषण भी उसके व्यवहार को काफी हद तक तय करता है। शिकागो विश्वविद्यालय के डा बेंजामिन लाहे इस शोध परियोजना के मुख्य शोधकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि यह शोध बच्चों के लालन-पालन के लिए अभिभावकों को सिखाए जाने वाले कौशल के संभावित लाभ को भी रेखांकित करता है। इस अध्ययन के परिणाम असामान्य बच्चों के मनोविज्ञान संबंधी पत्रिका में भी प्रकाशित हुए हैं।
Jagran Jul 07, 06:56 pm
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