Sunday, June 8, 2008

धान की भूसी से बिजली

धान की भूसी से बिजली..! अमेरिका में पढ़ने वाले छात्रों मनोज कुमार सिन्हा, चा‌र्ल्स रांसलेर और भारत में उनके दोस्त ज्ञानेश पांडेय ने यह चमत्कार कर दिखाया है, तो यह आपके उछल पड़ने का मौका होगा।

अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय [डारडेन स्कूल आफ बिजनेस] में पढ़ते हैं पटना के मनोज सिन्हा। उनके सहपाठी हैं चा‌र्ल्स रांसलेर। दोनों बिहार के ग्रामीण इलाकों से हैं, जहां बिजली की भारी कमी है। मनोज ने रांसलेर से विचार-विमर्श किया। प्रयोग किये गए और निष्कर्ष निकला कि ऐसा जनरेटर बन सकता है, जो धान की भूसी से बिजली बनाए। इनका साथ दिया पटना के रत्नेश कुमार ने, जो परियोजना के कार्यकारी निदेशक हैं।

यह ऐसी अनूठी परियोजना है, जिसमें धान की भूसी को जलाकर बिजली बनती है। इस प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है। वर्जीनिया विश्वविद्यालय ने माना है कि धान की भूसी वाले दो जनरेटरों की मदद से करीब दस हजार ग्रामीण भारतीयों को बिजली दी जा रही है। इस बिजली की तुलना डीजल या कोयला आधारित बिजली से करें, तो भूसी वाली पद्धति से प्रति गांव सालाना दो सौ टन कार्बन उत्सर्जन कम होगा। इस प्रक्रिया से बनने वाली राख का इस्तेमाल सीमेंट बनाने में हो सकता है।

प्रयोग के लिए पश्चिम चंपारण के तमकुहा व धनहा क्षेत्र ही चुने गए कि ये दोनों स्थान बिजली से अभी तक वंचित हैं, जबकि यहां धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। वर्जीनिया कालेज के 'बिजनेस प्लान' ने बतौर इनाम इस परियोजना को करीब एक लाख डालर दिए। बीती दो मई को टेक्सास यूनिवर्सिटी में आयोजित 'सोशल इनोवेशन कम्पीटिशन' में परियोजना को 50 हजार डालर की राशि बतौर पुरस्कार प्रदान की गई। इसके अलावा भी परियोजना को कई अन्य नकद पुरस्कार मिल चुके हैं। अब कोशिश सौ और गांवों में छोटे ऊर्जा संयंत्र लगाने की है।

तमकुहा में 15 अगस्त, 2007 को सफल प्रयोग के बाद लगभग एक महीने पहले धनहा गांव में भी धान की भूसी से विद्युत उत्पादन शुरू किया गया है। तमकुहा में स्थापित किया गया विद्युत संयंत्र 40 केवीए बिजली उत्पादन कर रहा है। साल भर के अंदर बीस अन्य संयंत्र लगाने की योजना है, जिनसे उत्पन्न होने वाली बिजली ग्रामीणों को लागत मूल्य पर दी जाएगी। फिलहाल घरेलू तथा व्यावसायिक उपभोग के लिए प्रति बल्ब [15 वाट] क्रमश: तीस और चालीस रुपये मासिक लिए जा रहे हैं। ज्ञानेश के मुताबिक चंपारण में औसतन धान की तीन सौ बीघे खेती से साल भर तक रोज सात-आठ घंटे बिजली मिल सकती है।

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