तेल का विकल्प तैयार करने के लिए कई देश जैव ईधन [बायो फ्यूल] का उत्पादन कर रहे हैं। जैव ईधन बनाने में अनाज खप रहा है। इससे दुनिया भर में खाद्यान्न संकट पैदा हो गया है। यही वजह है कि विश्व खाद्यान्न सुरक्षा सम्मेलन को जैव ईधन के संबंध में गहराई से अध्ययन करने की अपील करनी पड़ी है। अध्ययन से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि कृषि उत्पादों से ईधन बनाने से वैश्विक स्तर पर खाद्य आपूर्ति प्रभावित न हो। भारत शुरू से ही इस तरह के अध्ययन की मांग कर रहा था। विश्व के नेताओं ने रोम में तीन दिनों तक बैठक की। इसमें वैश्विक खाद्य संकट और बढ़ती कीमतों से मुकाबले के लिए रणनीति तैयार की गई।
रोम घोषणापत्र पर भारत सहित 180 देशों ने सहमति जताई है। मसौदे में कहा गया है कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने और इसे बरकरार रखने की जरूरत है।ऐसे में जैव ईधन उत्पादन के परिणामों का अध्ययन किया जाना चाहिए। इस मसौदे को काफी विचार-विमर्श के बाद और लातिन अमेरिकी देशों के विरोध के बीच मंजूरी दी गई।
भारत के कृषि मंत्री शरद पवार ने अध्ययन का समर्थन किया था। उनका कहना था कि यदि हम विश्व में उपलब्ध सारे अनाज को ईधन में तब्दील कर लें तो भी हमें भारी मात्रा में तेल की जरूरत पड़ेगी। हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं होगा। अनाज और तिलहन का जैव-ईधन बनाने में उपयोग पहली नजर में ही खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर चिंताजनक दिखता है। इसके विपरीत कई नेताओं विशेषकर ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने जैव ईधन के उपयोग की हिमायत की। उन्होंने कहा कि गरीब देशों में खाद्य सुरक्षा खत्म करने में जैव ईधन खलनायक की भूमिका नहीं निभा रहा। हमें उन शक्तिशाली गुटों द्वारा पेश धुंधली तस्वीर को साफ करना चाहिए जो खाद्य कीमतों की बढ़ोतरी के लिए एथनाल के उत्पादन को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। अर्जेटीना और क्यूबा समेत कुछ देशों ने बिना संशोधन के घोषणापत्र को मंजूरी देने के मामले में आपत्तिजताई है। बाद में जब उनके विचार को मसौदे में जोड़ने की मंजूरी दी गई तो वे राजी हो गए। सम्मेलन में जैव ईंधन पर अंतरराष्ट्रीय बातचीत को प्रोत्साहित करने की जरूरत को भी रेखांकित किया गया। घोषणापत्र में कहा गया कि प्रतिबंधात्मक कदमों के प्रयोग को कम करने की जरूरत है क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।
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