इस पक्षी का स्थानीय नाम 'अपूर्व चैते चारा' तथा वैज्ञानिक नाम 'केप्रीमुलगस मेहरेटेंसिस' है। खोजकर्ताओं के अनुसार मध्यम आकार वाले नाइटजार के पंख लंबे होते हैं। यह उड़ते हुए ही अपना शिकार [कीड़े-मकोड़ों] पकड़ने में सक्षम होता है। उल्लू की तरह इसे भी रात्रिचर पक्षियों की श्रेणी में रखा जा सकता है।
कोसी टापू में नाइटजार की पांच प्रजातियों की खोज की जा चुकी है। इनमें से साइक्स नाइटजार कभी-कभी ही नेपाल के प्रवास पर आता है। इनकी कुछ संख्या पाकिस्तान, पश्चिमोत्तर भारत और दक्षिण-मध्य चीन से भी आती है। गौरतलब है कि इस प्रजाति के पक्षियों की पूरी दुनिया में कुल संख्या का नौ फीसदी नेपाल में ही पाया जाता है।
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